UPCM मंत्रिमंडल के कृषि मंत्री ने कृषि वैज्ञानिकों को सम्मानित किया

लखनऊ (14 जून, 2019)।
UPCM मंत्रिमंडल के कृषि, कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान मंत्री सूर्यप्रताप शाही नेे लखनऊ स्थित भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के सभागार में उ.प्र. कृषि अनुसंधान परिषद, भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान व उ.प्र. एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साईंसेज के संयुक्त तत्वाधान में कृषकों की आय में अभिवृद्धि हेतु प्राथमिकताएं एवं रणनीति विषय पर आयोजित एक दिवसीय संगोष्ठी को सम्बोधित किया।

मंत्री सूर्यप्रताप शाही नेे कहा कि उत्तर प्रदेश द्वारा देश का 20 प्रतिशत खाद्यान्न उत्पादन किया जा रहा है। उन्होंने वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए कहा कि उनके द्वारा विकसित प्रजातियों एवं तकनीकों से प्रदेश आत्मनिर्भर हुआ है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में केवल 600-700 मिमी. तक वर्षा हो रही है वहीं इसकी अवधि भी कम हो रही है अतः वैज्ञानिकों को कम समय और कम जल उपयोग वाली प्रजातियों को विकसित किया जाना होगा जिस हेतु उपकार को कृषि विश्वविद्यालयों, के.वी.के. से समन्वय स्थापित करते हुए शोध किया जाना चाहिए। डी.बी.टी. के माध्यम से कृषकों को लाभ दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि किसानों को स्वायल हेल्थ कार्ड दिये गये हैं जिसमें लिखे हुए आंकड़ों को कृषकों को स्पष्ट रूप से समझाये जाने की आवश्यकता है। उन्होंने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ कृषकों को दिये जाने हेतु सरकार की कटिबद्धता दर्शायी।

इस अवसर पर मंत्री ने उ.प्र. एकेडमी ऑफ़ एग्रीकल्चरल सांइसेज, लखनऊ के अन्तर्गत परिषद द्वारा कृषि के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले चयनित कृषि वैज्ञानिकों को सम्मानित किया गया। सम्मानित किये जाने वाले वैज्ञानिक डा. ए.के. मिश्रा, भूतपूर्व विभागाध्यक्ष, क्राॅप साइंस, सी.आई.एस.एच., लखनऊ, डा. समीर कुमार विश्वास, प्रो. डिपार्टमेंट ऑफ़ पैथोलाॅजी, सी.एस.ए., कानपुर, डा. अमरीष चन्द्रा, प्रधान वैज्ञानिक, आई.आई.एस.आर., लखनऊ, अतुल यादव, आ. न.दे.कृ.वि.वि., अयोध्या और डा. संजीव कुमार, प्रधान वैज्ञानिक, आई.आई.एस.आर., लखनऊ, डा. राजेश कुमार, प्रधान वैज्ञानिक, आई.आई.वी.आर., वाराणसी, डा. राजेश कुमार, प्रधान वैज्ञानिक, आई.आई.एस.आर., लखनऊ है।

कृषि मंत्री कृषि के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले चयनित कृषि वैज्ञानिकों को सम्मानित सम्मानित करते हुए
कृषि मंत्री कृषि के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले चयनित कृषि वैज्ञानिकों को सम्मानित सम्मानित करते हुए

इस अवसर पर कृषि राज्य मंत्री रणवेन्द्र प्रताप सिंह ने बताया कि सरकार द्वारा 5.1 प्रतिशत विकास दर कृषि के लिये रखी गयी है। वर्ष 2022 तक कृषकों की आय को दोगुना करने के लिये सरकार कटिबद्ध है। उन्होंने कहा कि केवल कृषि से ही कृषकों की आय दोगुनी नहीं की जा सकती। प्रदेश की जोतें छोटी हैं जिससे कृषकों को अधिक लाभ नहीं हो पा रहा है। उन्होने आय बढ़ाने के लिए पशुओ की नस्ल सुधार कर पशुधन बढ़ाने तथा बकरी पालन मुर्गी पालन व बतख पालन पर जोर दिया। उन्होने रासायनिक खाद कीटनाशकों के प्रयोग से आने वाले पर्यावरर्णीय तथा मानव में हो रही समस्याओं से सचेत करते हुए जैविक खेती करने पर बल दिया। उन्होने कहा कि गाय पालन कर उसके मूत्र व गोबर का उपयोग कृषि में करके कम लागत में अधिक उत्पादन दिया जा सकता है।

सेमिनार में प्रदेश के कृषि विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिक, सी.एस.आई.आर. संस्थानों के वैज्ञानिक, कृषि, पशुपालन, उद्यान, मत्स्य, रेशम, बीज प्रमाणीकरण संस्था, बीज विकास निगम, राज्य प्रबन्ध संस्थान, यू.पी. एग्रो के निदेशकगण और प्रगतिशील कृषकों द्वारा भाग लिया गया। संगोष्ठी में देश एवं प्रदेश के कृषि एवं तत्संबंधी विशेषज्ञों द्वारा कृषकों की आय बढ़ाने हेतु भविष्य के लिए रणनीति बनाने पर चर्चा की गयी।

संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में महानिदेशक, उपकार डा. बिजेन्द्र सिंह द्वारा प्रतिभागियों का स्वागत किया गया। उनके द्वारा परिषद के विगत 30 वर्षों के कार्यों का संक्षिप्त विवरण दिया गया। उन्होंने बताया कि परिषद की स्थापना 14 जून, 1989 को मूलतः राज्य के कृषि विश्वविद्यालयों एवं राज्य प्रशासन के विभागों के बीच समन्वय स्थापित करने के लिये की गयी। उत्तर प्रदेश शासन ने वर्ष 2001 में कृषि विश्वविद्यालयों हेतु राज्य के कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान के दायित्व हेतु उपकार को नोडल एजेन्सी नामित किया गया है किंतु यह संस्था विगत वर्षों में नोडल एजेंसी के रूप में आशातीत कार्य नहीं कर सकी है, इसे शासन और कृषि विश्वविद्यालयों के सहयोग से इसके उद्देश्यों के अनुरूप गति दी जा सकती है। उन्होने परिषद द्वारा कार्यान्वित करायी गयी ऊसर भूमि सुधार परियोजना और कृषि विविधीकरण परियोजना का उल्लेख किया जिनकी संस्तुतियों का प्रदेश के कृषक ले रहे है। परिषद द्वारा शोध निधि और रिवाल्विंग फंड द्वारा वित्त पोषित परियोजनाओं पर प्रकाश डालते हुए महानिदेशक द्वारा भविष्य की शोध प्राथमिकताओं पर प्रकाश डालते हुए बताया कि प्रदेश सरकार की प्राथमिकता के अनुरूप गन्ने में एथनाॅल की रिकवरी के लिये प्राथमिकता रखी गयी है। उक्त के अतिरिक्त अन्य प्राथमिकताएं परिषद द्वारा विज्ञापित की गयी हैं जिन पर प्रदेश के कृषि विश्वविद्यालयों एवं शोध संस्थानों से परियोजनाएं प्राप्त कर शोध कार्य किया जायेगा।

कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही एक दिवसीय संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए
कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही एक दिवसीय संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए

भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के निदेशक डा. ए.डी. पाठक द्वारा अपने उद्बोधन में उनके संस्थान द्वारा किसानों की आय दोगुनी किये जाने के संबंध में किये गये शोध का संक्षिप्त विवरण दिया। उन्होंने कहा कि ऐसी तकनीक विकसित की गयी है जिसके माध्यम से गन्ना की उत्पादकता 70 टन प्रति हेक्टेयर तक पहुॅंच गयी है।

डा. गया प्रसाद कुलपति स.व. पटेल कृषि विश्वविद्यालय, मेरठ ने कृषकों की आय बढ़ाने में चुनौतियों को चिन्हांकित कर उन पर शोध कार्य कराने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि कृषि मौसम पर निर्भर है और मौसम में आकस्मिकता के कारण कृषि प्रभावित हो रही है। ऐसे में कृषि विविधीकरण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने भू-जल स्तर के दिन-प्रतिदिन गिरने पर चिंता व्यक्त करते हुए भू-जल रिचार्ज पर विशेष ध्यान देने पर बल दिया।

डा. के.वी. प्रभु, अध्यक्ष, प्रोटेक्शन ऑफ़ प्लान्ट वेराइटीज एण्ड फार्मर्स राइट्स, अथाॅरिटी, नई दिल्ली द्वारा उपकार के कार्यों की सराहना करते हुए प्रदेश सरकार से रू. 100 करोड़ उपकार को शोध कार्यों के लिये देने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि जैविक खेती के लिये प्रजातियाॅं तथा तकनीकी विकसित किये जाने की आवश्यकता है।

उक्त अवसर पर अध्यक्ष उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद कैप्टन विकास गुप्ता (से.नि.) ने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में परिषद को 30वें स्थापना दिवस की बधाई देेते हुए कहा कि परिषद सीमित वित्तीय संसाधनों में प्रदेश में शोध एवं समन्वय का कार्य कर रही है। परिषद द्वारा विगत 30 वर्षों में किये गये शोध कार्यों से प्रदेश के कृषक लाभान्वित हो रहे हैं।

सचिव, कृषि, कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान बी. राम शास्त्री द्वारा उपकार को उपयोगी बताते हुए कहा कि उपकार का मुख्य कार्य कृषि विश्वविद्यालयों, के.वी.के. और शासन के मध्य समन्वय स्थापित करना है। उनके द्वारा यह विचार दिया गया कि उपकार के वैज्ञानिकों को कृषि विज्ञान केन्द्रों के लिए प्रभारी नामित करते हुए वहाॅ के कार्यो का समन्वय, अनुश्रवण व मूल्यांकन किया जाय।

उद्घाटन सत्र के विशिष्ट अतिथि डा0 पंजाब सिंह, पूर्व महानिदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा सभी पोषक तत्वों व प्राकृतिक संसाधनों के निरन्तर कम होने पर चिंता व्यक्त की। उनके द्वारा सभी शोध संस्थानों, कृषि विश्वविद्यालयों एवं प्रदेश के तत्संबंधी विभागों को समन्वय स्थापित कर कार्य करने में उपकार की भूमिका को सुदृढ़ करने की आवश्यकता पर बल दिया।

सेमिनार में डा. के.वी. प्रभू, अध्यक्ष, प्रोटेक्शन ऑफ़ प्लान्ट वेराइटीज एण्ड फार्मर्स राइट्स, अथाॅरिटी, नई दिल्ली द्वारा पौधों की विविधता संरक्षण, किसानों के अधिकार और लाभ साझा करने हेतु अपने विचार दिये गये। डा. सुरेश पाल, निदेशक, एन.आई.ए.ई.पी., नई दिल्ली द्वारा कृषि आय दोगुनी करने के लिए कृषि विकास में तेजी लाने के लिए अपने विचार व्यक्त किये। डा. आर.सी. श्रीवास्तव, कुलपति, राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, बिहार, द्वारा कृषि संकटः रणनीतियाॅ और आगे की राह विषयक व्याख्यान दिया। डा. आर.के. सिंह, निदेशक, भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, बरेली द्वारा उत्तर प्रदेश में किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में पशुधन क्षेत्र की क्षमता पर अपने विचार व्यक्त किये गये। डा. एस.के. चतुर्वेदी, डीन, रानी लक्ष्मीबाई केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झांसी द्वारा कृषकों की आय में अभिवृद्धि हेतु बुंदेलखंड क्षेत्र में कृषि और संबद्ध क्षेत्र में सुधार संबंधी प्रस्तुतीकरण किया गया।

परिषद के सचिव ज्ञान सिंह द्वारा सेमिनार में आये मंत्री कृषि, कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान, राज्य मंत्री, कृषि, कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान, वैज्ञानिकों/अधिकारियों/कर्मचारियों का सेमिनार में भाग लेने हेतु धन्यवाद ज्ञापित किया और आभार व्यक्त किया।

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